नई दिल्ली: दलित ईसाइयों और मुस्लिमों को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने और आरक्षण देने के मुद्दे पर तीन सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार करने की केंद्र सरकार की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. बुधवार को कोर्ट ने कहा कि मामला लगभग दो दशकों से पेंडिंग था, अब इस मुद्दे पर फैसला आ जाना चाहिए. दरअसल केंद्र सरकार ने पूर्व सीजेआई केजी बालाकृष्णन के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी. इसका काम इस बात की जांच करना था कि क्या अनुसूचित जाति का दर्जा उन लोगों को दिया जा सकता है, जिन्होंने दलित समुदाय का होने का दावा किया था, लेकिन धर्म परिवर्तन कर चुके हैं.
बता दें कि केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को न मानते हुए दूसरी कमेठी का गठन किया था. रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट में धर्मपरिवर्तन के बावजूद ईसाइयों, मुस्लिमों, सिख और बौद्ध धर्म के लोगों को भी आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी.
रिपोर्ट की फिर से जांच करे सरकार
वहीं सरकार ने आरोप लगाया कि रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट बिना किसी अध्ययन और परामर्श के तैयार की गई थी. लेकिन इसके उलट कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि रिपोर्ट में लापरवाही नहीं की गई थी. पीठ ने कहा कि सरकार बहुत सामान्य बयान दे रही है और उसे रिपोर्ट की फिर से जांच करनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि वह समयबद्ध तरीके से सुनवाई पूरी करेगी. पाठ ने सभी पक्षों को अपनी संक्षिप्त लिखित दलीलें दाखिल करने और मामले में सुचारू सुनवाई के लिए आम सहमति बनाने को कहा, जिसमें दोनों पक्षों को दलीलें पूरी करने के लिए दो-दो दिन का समय मिलेगा.
कितनी कमेटियां बनाते रहेंगे: सुप्रीम कोर्ट
वहीं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज के नए आयोग की रिपोर्ट का इंतजार करने की दलील पर पीठ ने कहा कि कल अगर एक अलग राजनीतिक व्यवस्था होगी जो कहेगी कि नई रिपोर्ट स्वीकार्य नहीं है, तब ऐसे कितने कमेटी बनाए जाएंगे. वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन, सीडी सिंह, कॉलिन गोंसाल्वेस और प्रशांत भूषण ने कहा कि इस मुद्दे पर कोर्ट निर्णय ले सकती है क्योंकि दलित मुसलमानों और ईसाइयों को आज भी अछूत माना जाता है और उनके साथ भेदभाव किया जाता है.
सामाजिक और धार्मिक भेदभाव अलग-अलग चीजें
याचिका का विरोध करने वाले एक पक्ष ने कहा कि अगर दलित ईसाइयों और मुसलमानों को अभी भी अछूत माना जाता है, तो वे कानूनी सहारा ले सकते हैं. न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा कि सामाजिक और धार्मिक भेदभाव अलग-अलग चीजें हैं. धर्मांतरण के बाद भी सामाजिक कलंक बना रह सकता है. जब हम इन सभी संवैधानिक मामलों पर विचार कर रहे हैं तो हम अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते.
नहीं मिल सकता अनुसूचित जाति का दर्जा
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र ने कोर्ट से कहा था कि जो दलित ईसाई और इस्लाम धर्म में अपना लिए हैं, उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उन धार्मिक समुदायों में कोई पिछड़ापन या उत्पीड़न नहीं है. एक हलफनामे में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने कहा कि 1950 का संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश किसी भी असंवैधानिकता से ग्रस्त नहीं है और यह कानूनी और वैध है. केंद्र एक एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की एक याचिका का जवाब दे रहा था, जिसे 2004 में दायर किया गया था.